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॥भागवत ४.२१.४१ ॥
यद्यपि भगवान अनंत विभिन्न देवताओं के नामों से अग्नि में अर्पित हवियों को खाते है, किन्तु वे अग्नि के माध्यम से खाने में उतनी रूचि नहीं दिखते जितनी कि विद्वान साधुओं तथा भक्तों के मुख से भेंट को स्वीकार करने में, क्योकि तब उन्हें भक्तों की संगती त्यागनी नहीं होत।